मराठों की दिल्ली

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देश को आजाद कराने के लिए मराठों ने एक दो बार नहीं बल्कि सौ वर्षों तक लगातार हमले किए। मराठा सरदार महादजी शिंदे (सिंधिया) के समय मराठों ने दिल्ली पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था और लाल किले पर भगवा ध्वज लहराया था। बाजीराव पेशवा ने दिल्ली पर हमला किया और विजयी रहे थे।

इतिहास लिखा जाए या ना लिखा जाए, इतिहास, इतिहास ही होता है। हमें अभी तक स्कूल- कॉलेज में पढ़ाया गया इतिहास तो वैसे भी ब्रिटिश हुकमरानों और उनके जाने के बाद उन्हीं के पदचिन्हों पर चलने वाले देश के सत्तासीनों के कहने, पद और पैसे की लालसा में लिखा गया है। यही कारण है कि आततायी मुगलों को तो महिमामंडित किया गया लेकिन उनकी नाक में दम करने वाले मराठाओं के शौर्य को इतिहास में जगह नहीं दी गई जबकि सत्य यह है कि मराठों ने दिल्ली पर आठ आक्रमण किए। यहां तक कि पानीपत की पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए भी मराठों ने दिल्ली पर हमला किया और जीत हासिल की। मराठाओं ने यह हमले केवल दिल्ली जीतने के लिए नहीं किये बल्कि सनातन धर्म के अपमान का बदला लेने और देश को आजाद करवाने के लिए  बार-बार किये।  देश को आजाद कराने के लिए मराठों ने एक दो बार नहीं बल्कि सौ वर्षों तक लगातार हमले किए। मराठा सरदार महादजी शिंदे (सिंधिया) के समय मराठों ने दिल्ली पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था और लाल किले पर भगवा ध्वज लहराया था। बाजीराव पेशवा ने दिल्ली पर हमला किया और विजयी रहे थे।

1689 में औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र संभाजी महाराज को मार डाला था और उनकी पत्नी यशोबाई को बंदी बना लिया था। वे तीस वर्षो तक कैद में रहीं। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद यशोबाई को लालकिले में भेज दिया गया था। पहली बार पेशवा बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ भट्ट ने 1719 में शिवाजी की पुत्रवधु यशोबाई को लाल किले से छुड़ाने के लिए दिल्ली पर हमला किया था और सफल हुए थे। यशोबाई संभाजी महाराज की पत्नी (छत्रपति साहू जी महाराज की माता) थी। यशोबाई को छुड़ाने के बाद मराठों ने उत्तर की ओर रुख किया। बाजीराव पेशवा के नेतृत्व में अटक (पाकिस्तान में) तक भगवा लहराया। मराठों ने पहली बार अफगानों और रोहिल्लों को खैबर के उस पार भगाया था। अटक के बाद पेशावर पर भी कब्जा किया। मराठा सेनापति बापूजी त्रयंबक ने मुल्तान और डेरा गाजी खान पर भी अपना कब्जा कर लिया था लेकिन रघुनाथ राव और उनके सहयोगी मल्हार राव दिल्ली पर कब्जा करने को उत्सुक थे। 1759 में रघुनाथ राव, दत्ताजी शिंदे और जनकोजी शिंदे के साथ दिल्ली की ओर रवाना हुए

ब्रिटिश और मुगल इतिहास के अनुसार पराक्रमी मराठा पेशवा बाजीराव ने अपने भाई रघुनाथ राव को मल्हार राव होलकर के साथ दिल्ली पर हमला करने भेजा था जिन्होंने अगस्त 1757 में दिल्ली की मुगल सल्तनत को परास्त करके अगले वर्ष 1758 में रोहिल्ला और अफगानों के सम्मिलित हमले में धूल चटाई। रोहिल्ला सेनापति नजीब खान ने मराठों के सामने समर्पण कर दिया और उनकी कैद में रहा। दिल्ली पर इस दौरान मराठों का राज हुआ और उन्होंने पराक्रम और परोपकार से दिल्ली को सींचा।

मराठों ने 1760 में लाल किले के दीवान-ए-खास की छत से चांदी की परत को निकलवाकर नौ लाख रुपये की कीमत के सिक्के बनवा लिए थे। इतिहास गवाह है कि 1771 और 1788 में महादजी शिंदे के नेतृत्व में दिल्ली पर मराठों का हमला तथा कब्जा हुआ था। दिल्ली की मुगलिया सल्तनत महादजी शिंदे के नियंत्रण में थी। वे लाल किले के तख्त पर बैठे थे। लगभग 15 वर्ष दिल्ली के लाल किले पर भगवा झंडा लहराया था। यह बात भी एक दम झूठ है कि अंग्रेज़ों ने मुगलों से दिल्ली हांसिल की थी, सच तो यह है कि

अंग्रेजों ने मुगलों से नहीं बल्कि बहुत कठिनाइयों के बाद मराठों से छीनी थी दिल्ली  अंग्रेजों ने 11 सितंबर 1803 को पटपड़गंज में मराठों के साथ हुए युद्ध में दिल्ली को जीता था। ऐसे में अंग्रेजों ने दिल्ली को मुगलों से नहीं मराठों से लिया था। अंग्रेजी सेना और फ्रांसीसी कमांडर लुई बारक्विएन के नेतृत्व में मराठों की सेना के बीच 11 सितंबर 1803 को  पटपड़गंज के समीप यह युद्ध दिल्ली के युद्ध के नाम से ही जाना जाता है।

 

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