आज एकल परिवार में बच्चे संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। पहले त्योहार, पर्व पर ऐसी व्यवस्था थी कि पूरा परिवार एकत्र होकर धार्मिक अनुष्ठान, कर्मकांड से संस्कार सीखता था। परिवार में सब मिलजुलकर रहें यहीं से निर्मित होता है एक सौहार्द।
परिवार हमारे जीवन का आधार है। हमारी जड़ है। हमारी पहचान है। यही नहीं यह व्यवस्था हमारे संस्कारों का केंद्र भी है। यहीं से इसी धुरी से हम नैतिकता, शील, धैर्य, क्षमा आदि गुणो से जीवन का निर्माण करते है। यही हमारा जीवन मूल्य एवं चरित्र निर्माण करता है।
परिवार व्यवस्था एवं संस्कारों पर छोटा सा प्रसंग
अयोध्या से वनगमन के बाद चित्रकूट में श्रीराम और भरत मिले। भरत श्रीराम से बार-बार निवेदन करते हैं कि वह अयोध्या चलकर राजपाठ संभाले। पर श्रीराम राजपाठ संभालने से मना कर देते है और भरत से कहते हैं कि तुम मुनि माता मंत्रियों की शिक्षा मानकर पृथ्वी प्रजा एवं अयोध्या का पालन करना। जब श्रीराम अपने निर्णय पर दृढ़ रहे तो भरत ने चौदह वर्षों तक राम की चरण पादुका रखकर राज किया। भरत ने स्वयं को पीछे रखकर ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें उसकी नैतिकता का उदारहण लेकर हर प्रजाजन ने रामराज्य के दायित्व का पालन किया।
आज एकल परिवार में बच्चे संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। पहले त्योहार, पर्व पर ऐसी व्यवस्था थी कि पूरा परिवार एकत्र होकर धार्मिक अनुष्ठान, कर्मकांड से संस्कार सीखता था। परिवार में सब मिलजुलकर रहें यहीं से निर्मित होता है एक सौहार्द। संस्कार हीनता दूर करने का एकमात्र सरल व्यवहार शास्त्रों का अध्ययन, गोसेवा, और प्रकृति की पूजा है। व्यक्ति परिवार संस्था का अंग इसलिए बनता है कि वह समाज संसार की अशांति से दूर यहां शांति पा सकें। हर रिश्ते के अपने अलग बीज है, सबकी प्रकृति भी अलग है पर यदि संस्कार से परिवार में समन्वय रहे तो गेहूं की बाली में भी मिठास आ सकती है।
बढ़ती आधुनिकता ने भारतीय परिवारों की जीवनचर्या में बहुत बदलाव ला दिया है। परिवार के सदस्य घर के सदस्यों के अलावा बाहर अधिक भरोसा करने लगे हैं। इस पर चिंतन करें कि बच्चा या घर का सदस्य बाहरी दुनिया से क्यों प्रभावित है। सबसे पहले प्रेम से भरकर घर में पूजा प्रारंभ करें जब सभी सदस्य एक साथ घर में पूजा करेंगे तो एक दूसरे के प्रति आदर के साथ सहयोग की भावना से भी भर जाएंगे। विश्व में भारत परिवार व्यवस्था के लिए जाना जाता है, उसमें पीढ़ी-दर पीढ़ी दिये जाने वाले संस्कारों के लिए। अब एकल परिवार में संस्कार समाप्त होते जा रहे है। परिवार टूटने लगे है। हम सभी का यह संकल्प होना चाहिए कि परिवार संस्था बची रहे। परिवार बचाना भी एक बड़ी राष्ट्र सेवा है। हमारे धर्म ग्रंथों ने अपने बुजुर्गों को देवतुल्य माना है। उन्हें ईश्वर का स्वरुप माना है। अगर अपने पुरखों के प्रति सेवा व सम्मान भाव आगे की पीढ़ी में गया तो घर में दिव्यता व शांति रहेगी। यही नहीं हमारी मर्यादा भी अक्षुण्ण रहेगी। परिवार में संस्कार के दृढ़ होते ही समस्याओं का समाधान मिलेगा। परिवार की एक ईश्वर कृपा है। जब यह भाव जीवन परिवार में उतरेगा परिवार शांत सुखी रहेंगे। परिवार टूटते हैं तो सामाजिक एकता बिखरती है और कहीं न कहीं राष्ट्र की अंखड़ता पर भी इसका असर होता है।