तुलसी के आराध्य राम हैं। इष्ट राम हैं। सबकुछ राम हैं। तुलसी के राम में शील, शक्ति और सौंदर्य का अपूर्व रूप समाहित है। गृहस्थ जीवन से दूर होने के बाद से ही तुलसी दास अपने जीवन को पूरी तरह राम को समर्पित कर दिया।
मध्य काल में जब विदेशी आक्रमणकारियों और सल्तनतों ने हिंदू समाज की रोटी, बेटी और चोटी पर निशाना बनाया, जब समाज निराश था, तब भक्त कवियों ने ईश्वर के सहारे देश को जगाया। संत कवि गोस्वामी तुलसीदास उन्हीं भक्त कवियों में से ही एक थे। वे सुगण भक्ति धारा के कवि और संत थे। तुलसी के आराध्य राम हैं। इष्ट राम हैं। सबकुछ राम हैं। तुलसी के राम में शील, शक्ति और सौंदर्य का अपूर्व रूप समाहित है। गृहस्थ जीवन से दूर होने के बाद से ही तुलसी दास अपने जीवन को पूरी तरह राम को समर्पित कर दिया।
पत्नी से मिली राम प्रेम की प्रेरणा
कहा जाता है कि राम की ओर तुलसी को प्रेरित करने में उनकी पत्नी का हाथ रहा...उनकी पत्नी रत्नावली एक बार मायके चली गईं। उनसे मिलने के लिए तुलसी बरसात की एक रात बाढ़ की परवाह किए बिना पहुंच गए। वहां रत्नावली उन्हें देखकर चकित रह गई। कहा जाता है कि उन्होंने ही तुलसी को राम से नेह लगाने का सुझाव दे डाला...
हाड़ - मांस को देह मम, तापर ऐसो प्रीत..
तिसु आधो जो राम प्रति, अवसि मिटिहि भवभीति।
यानी हाड़ और मांस से बनी मेरे शरीर से आपको इतना स्नेह है..अगर इससे आधा भी आपने रघुनाथ यानी राम से प्रेम करते तो हमारे संपूर्ण कष्ट दूर हो जाते...
कहा जाता है कि तुलसी ने पत्नी के इस सुझाव को गांठ बांध लिया और संन्यास के पथ पर निकल गए और राम से इतना प्यार किया कि रामचरितमानस लिख डाला। राम की गाथा को जनजन के लिए अमर गान बना दिया।
मर्यादा पुरूषोत्तम राम
तुलसी की रचनाओं में राम की मर्यादा, करुणा, दया, शौर्य, साहस और त्याग जैसे सद्गुणों की व्याख्या हुई है। इसके जरिए वे मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में स्थापित होते हैं। तुलसी ने रामचरित मानस के जरिये राम से समूची मानव जाति के आदर्शों को जोड़ दिया है। इस तरह वे राम को जन-जन का राम बना देते हैं।
मनुष्य के संस्कार की कहानी
तुलसी रचित रामचरितमानस मनुष्य के संस्कार की कहानी भी है। जिसका माध्यम राम हैं...इसके जरिए राम से जुड़ा काव्य भारतीय संस्कृति का प्राण तत्व बन जाता है.. तुलसी के राम सब में रमते हैं और वे नैतिकता, मानवता, कर्म, त्याग द्वारा लोकमंगल की स्थापना करने की कोशिश करते हैं। मनुष्य के संस्कार की कहानी तुलसी ने रामचरित मानस के जरिये समूचे भारतीय समाज को भगवान श्रीराम के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण दर्पण दिया है, जिसके जरिए मनुष्य अपने गुणों-अवगुणों का मूल्यांकन कर सकते हैं। इसके साथ ही राम की तरह मर्यादित रहते हुए करुणा, दया, शौर्य, साहस और त्याग का प्रतीक बन सकते हैं।
धर्म तथा त्याग जीवन का मंत्र
तुलसी ने सत्य और परोपकार को सबसे बड़ा धर्म तथा त्याग को जीवन का मंत्र माना है। उनके राम भी ऐसे ही हैं। तुलसी के राम असत्य, पाखंड, ढोंग और अंधविश्वास को नहीं मानते। वे समाज को ज्ञान, भक्ति और संस्कार का पाठ देते हैं। तुलसी इसके जरिए हिंदू समाज को जगाने की कोशिश करते हैं। तुलसी के राम बहुत सोच-समझकर अपना मित्र बनाते हैं. क्योंकि वे मानते हैं कि इंसान का जैसा संग-साथ होगा, उसका आचरण और व्यक्तित्व भी वैसा ही होगा।
आदर्श के प्रतिरूप
तुलसीदास के राम भजन को राजमार्ग मानते है। तुलसी के राम हर तरह के आदर्श के प्रतिरूप है। आदर्श पुत्र,आदर्श पति, आदर्श शिष्य,आदर्श मित्र, आदर्श भाई और आदर्श शासक भी हैं.. तुलसी के राम परम् ब्रह्म हैं।