हिंदू मंदिरों की आज की स्थिति पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण

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राष्ट्र की एकात्मता, अखण्डता, सुरक्षा, सुव्यवस्था, समृद्धि तथा शान्ति के लिये चुनौती बनकर आनेवाली अथवा लायी गयी अन्तर्गत अथवा बाह्य समस्याओं के प्रतिकार की तैयारी रखने के साथ साथ हिन्दू समाज के कुछ प्रश्न भी हैं; जिन्हें सुलझाने का कार्य होने की आवश्यकता है ।

(विजयादशमी उत्सव (शुक्रवार दि.15 अक्तूबर 2021) के अवसर पर प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत के उद्बोधन का अंश)

 

राष्ट्र की एकात्मता, अखण्डता, सुरक्षा, सुव्यवस्था, समृद्धि तथा शान्ति के लिये चुनौती बनकर आनेवाली अथवा लायी गयी अन्तर्गत अथवा बाह्य समस्याओं के प्रतिकार की तैयारी रखने के साथ साथ हिन्दू समाज के कुछ प्रश्न भी हैं; जिन्हें सुलझाने का कार्य होने की आवश्यकता है । हिंदू मंदिरों की आज की स्थिति यह ऐसा एक प्रश्न है । दक्षिण भारत के मन्दिर पूर्णतः वहां की सरकारों के अधीन हैं । शेष भारत में कुछ सरकार के पास, कुछ पारिवारिक निजी स्वामित्व में, कुछ समाज के द्वारा विधिवत् स्थापित विश्वस्त न्यासोंकी व्यवस्था में हैं । कई मंदिरों की कोई व्यवस्था ही नहीं ऐसी स्थिति है । मन्दिरों की चल/अचल सम्पत्ति का अपहार होने की कई घटनाएँ सामने आयी हैं । प्रत्येक मन्दिर तथा उसमें प्रतिष्ठित देवता के लिए पूजा इत्यादि विधान की परंपराएँ तथा शास्त्र अलग अलग विशिष्ट है, उसमें भी दखल देने के मामले सामने आते हैं । भगवान का दर्शन, उसकी पूजा करना, जातपातपंथ न देखते हुए सभी श्रद्धालु भक्तों के लिये सुलभ हों, ऐसा सभी मन्दिरोंमें नहीं है, यह होना चाहिये । मन्दिरों के, धार्मिक आचार के मामलों में शास्त्र के ज्ञाता विद्वान, धर्माचार्य, हिन्दू समाज की श्रद्धा आदि का विचार लिए बिना ही निर्णय किया जाता है ये सारी परिस्थितियाँ सबके सामने हैं । "सेक्युलर" होकर भी केवल हिन्दू धर्मस्थानों को व्यवस्था के नाम पर दशकों शतकों तक हडप लेना, अभक्त/अधर्मी/विधर्मी के हाथों उनका संचालन करवाना आदि अन्याय दूर हों, हिन्दू मन्दिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे तथा हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति का विनियोग भगवान की पूजा तथा हिन्दू समाज की सेवा तथा कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित व आवश्यक है । इस विचार के साथ साथ ही हिन्दू समाज के मन्दिरों का सुयोग्य व्यवस्थापन तथा संचालन करते हुए, मन्दिर फिरसे समाजजीवन के और संस्कृति के केन्द्र बनाने वाली रचना हिन्दू समाज के बल पर कैसी बनायी जा सकती है, इसकी भी योजना आवश्यक है।

 

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