जलियावाला बाग़ हत्याकांड का बदला लेने वाले क्रांतिकारी ऊधम सिंह

डॉ. शब्द प्रकाश

जब डायर की मौत की जाँच शुरू हुयी तो उनसे अंग्रेज अफसरों ने डायर को मारने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया “जनरल डायर ने मेरे देश के 3000 निर्दोष भारतवासियों की अकारण हत्या करा दी थी तभी मैंने जनरल डायर को मारने का संकल्प ले लिया था जिसे पूरा करने में मुझे पुरे 21 साल लगे। “मातृभूमि की खातिर मुझे मौत से बड़ा सम्मान और क्या दिया जा सकता है। मैं अपने देश के लिए प्राणों का समर्पण करने जा रहा हूँ।”

सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनम गाँव में हुआ था।

13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजो के रोलेट एक्ट के विरोध में जलियावाला बाग़ में एक विशाल सभा का आयोजन किया था। उस समय उधम सिंह उस विशाल सभा के लिए पानी की व्यवस्था में लगे हुए थे। अंग्रेज जनरल डायर ने जलियावाला बाग़ में निहत्थे प्रदर्शनकारीयो पर अंधाधुंध गोलिया चलाने का आदेश दिया। डायर के आदेश पर सेना ने 15 मिनट में 1650 राउंड गोलिया चलाई थी और लगभग 3000 निहत्थे लोग उस भारी नरसंहार में मारे गये थे।

उस नरसंहार में शहीद उधम सिंह जीवित बच गये थे और उन्होंने अपनी आँखों से ये नरसंहार देखा था। उधम सिंह उस समय लगभग 11-12 वर्ष के थे और इतनी कम उम्र में उन्होंने संकल्प लिया कि “जिस डायर ने क्रूरता के साथ मेरे देश के नागरिको की हत्या की है इस डायर को मै जीवित नही छोडूंगा और यही मेरे जीवन का आखिरी संकल्प है”।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए जर्मनी चले गये। 1934 से जर्मनी से लन्दन पहुच गये और लन्दन में जाकर वहा पर उन्होंने एक होटल में वेटर का काम किया ताकि कुछ ओर पैसे इकट्ठे कर बन्दुक खरीदी जा सके। उनको ये सब काम करने में पुरे 21 साल लग गये फिर भी उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला कम नही हुयी थी। 13 मार्च 1940 को लन्दन के एक शहर किंग्स्टन में जनरल डायर का बड़ा कार्यक्रम चल रहा था। उस सामरोह में जनरल डायर का सम्मान किया जा रहा था। उस समारोह के अंत में उधम सिंह अपनी सीट से उठे और तुरंत जनरल डायर पर तड़ातड़ तीन गोलिया चलाई और तीन गोलिया चलाकर डायर को मार दिया। डायर को मारने के बाद भागने के बजाय उन्होंने एक ही वाक्य कहा था “आज मैंने मेरे 21 साल पुराना संकल्प पूरा किया है और मै इसके बाद एक मिनट जिन्दा नही रहना चाहता हूँ ”।

जब डायर की मौत की जाँच शुरू हुयी तो उनसे अंग्रेज अफसरों ने डायर को मारने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया “जनरल डायर ने मेरे देश के 3000 निर्दोष भारतवासियों की अकारण हत्या करा दी थी तभी मैंने जनरल डायर को मारने का संकल्प ले लिया था जिसे पूरा करने में मुझे पुरे 21 साल लगे। “मातृभूमि की खातिर मुझे मौत से बड़ा सम्मान और क्या दिया जा सकता है। मैं अपने देश के लिए प्राणों का समर्पण करने जा रहा हूँ।”

उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी और 31 जुलाई 1940 को उन्हें लन्दन की जेल में फांसी दिया गया और फिर वही जेल में उनके शव को दफन कर दिया गया। 

उनकी मौत के केवल 7 वर्ष बाद भारत अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया। 1974 में पंजाब के MLA संधू सिंह के कहने पर उनकी अस्थियो को जमीन खोदकर भारत लाया गया। बाद में उधम सिंह के अवशेषों को अपने जन्म स्थान पर दाह संस्कार किया गया और उनकी अस्थियो को सतलुज नदी में बहा दिया गया। उधम सिंह के नाम पर उत्तराखंड में एक जिले का नाम उधमसिंह नगर रखा गया है।    

 

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