एकात्म व अखण्ड राष्ट्र की पूर्वशर्त समताधिष्ठित भेदरहित समाज का विद्यमान होना है ।

(विजयादशमी उत्सव (शुक्रवार दि.15 अक्तूबर 2021) के अवसर पर प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत के उद्बोधन का अंश)
एकात्म व अखण्ड राष्ट्र की पूर्वशर्त समताधिष्ठित भेदरहित समाज का विद्यमान होना है । इस कार्य में बाधक बनती जातिगत विषमता की समस्या हमारे देश की पुरानी समस्या है । इस को ठीक करने के लिए अनेक प्रयास अनेक ओर से, अनेक प्रकार से हुए । फिर भी यह समस्या सम्पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है । समाज का मन अभी भी जातिगत विषमता की भावनाओं से जर्जर है । देश के बौद्धिक वातावरण में इस खाई को पाट कर परस्पर आत्मीयता व संवाद को बनानेवाले स्वर कम हैं, बिगाड़ करनेवाले अधिक हैं । यह संवाद सकारात्मक हो इसपर ध्यान रखना पडेगा । समाज की आत्मीयता व समता आधारित रचना चाहनेवाले सभी को प्रयास करने पड़ेंगे । सामाजिक तथा कौटुम्बिक स्तर पर मेलजोल को बढाना होगा । कुटुम्बों की मित्रता व मेलजोल सामाजिक समता व एकता को बढ़ावा दे सकता है । सामाजिक समरसता के वातावरण को निर्माण करने का कार्य संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता गतिविधियों के माध्यम से कर रहे हैं ।