आपस की शत्रुताओं को बढाकर उस इतिहास की पुनरावृत्ति कराने के कुप्रयासों को पूर्ण विफल करते हुये, खोयी हुई एकात्मता व अखंडता हम पुनः प्राप्त कर सकें इस लिये वह स्मरण आवश्यक हैं ।

(विजयादशमी उत्सव (शुक्रवार दि.15 अक्तूबर 2021) के अवसर पर प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत के उद्बोधन का अंश)
यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75 वां वर्ष है । 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए । हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए । स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था । हम सब जानते हैं कि हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली । स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो इसकी, भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएँ मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खडे किये; दासता के दंश को झेलता समाज भी एकसाथ उनके साथ खडा रहा; तब शान्तिपूर्ण सत्याग्रह से लेकर सशस्त्र संघर्ष तक सारे पथ स्वाधीनता के पड़ाव तक पहुँच पाये । परन्तु हमारी भेदजर्जर मानसिकता, स्वधर्म स्वराष्ट्र और स्वतंत्रता की समझ का अज्ञान, अस्पष्टता, ढुलमुल नीति, तथा उनपर खेलने वाली अंग्रेजों की कूटनीति के कारण विभाजन की कभी शमन न हो पाने वाली वेदना भी प्रत्येक भारतवासी के हृदय में बस गई । हमारे संपूर्ण समाज को विशेष कर नयी पीढ़ी को इस इतिहास को जानना, समझना तथा स्मरण रखना चाहिए । किसी से शत्रुता पालने के लिए यह नहीं करना है । आपस की शत्रुताओं को बढाकर उस इतिहास की पुनरावृत्ति कराने के कुप्रयासों को पूर्ण विफल करते हुये, खोयी हुई एकात्मता व अखंडता हम पुनः प्राप्त कर सकें इस लिये वह स्मरण आवश्यक हैं ।