एक बहुत विशाल पेड़ था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उसमें से एक बहुत सयाना हंस था, बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसकी सबूत का आदर करते और ताऊ कहकर बुलाते थे।
एक बहुत विशाल पेड़ था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उसमें से एक बहुत सयाना हंस था, बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसकी सबूत का आदर करते और ताऊ कहकर बुलाते थे।
एक दिन उसने एक नन्ही सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटा पाया। ताऊ ने दुसरे हंसों को बुलाकर कहा देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।
एक युवा हंस हंसते हुए बोला ताऊ यह छोटी सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी।
बुद्धिमान हंस ने समझाया आज यह तुम्हें छोटी सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी कोई भी शिकार चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।
दूसरे हंस को यकीन नहीं आया एक छोटी सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी?
तीसरा बोला, ताऊ आप तो एक छोटी सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लंबा कर रहे है।
एक हंस बडबडाया, ताऊ अपनी अकल का रौब डालने के लिए अंट शंट कहानियां बना रहे है।
इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अकल कहां थी?
समय बिता रहा। बेल लिपटते – लिपटते ऊपर शाखाओं तक पहुंच गया। बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सच में ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था।
सबको ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी।
एक दिन जब सभी हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिया इधर आ निकला।
पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़कर जाल बिछाया और चला गया।
शाम को सारे हंस लौट आए और जब पेड़ से उतरे तो बहेलिया के जाल में बुरी तरह फंस गए।
जब जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा।
सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आप को कोस रहे थे।
ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था।
एक हंस ने हिम्मत करके कहा ताऊ हम मूर्ख हैं लेकिन अब हमसे मुंह मत मोड़ो।
दूसरा हंस बोला, इस संकट से निकलने की तरकीब आप ही हमें बता सकते हैं। आगे हम आपकी कोई बात नहीं टालेंगे।
जब सभी हंसो ने हामी भरी तब ताऊ ने कहा मेरी बात ध्यान से सुनो।
सुबह जब बहेलिया आएगा तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकालकर जमीन पर रखता जाएगा। वहां भी मरे सामान पड़े रहना। जैसे ही वह अंतिम हंस को रखेगा मैं सिटी बजाऊंगा मेरे सिटी सुनते ही सब उड़ जाना।
सुबह बहेलिया आया।
हंसो ने वैसा ही किया जैसा ताऊ ने समझाया था।
सचमुच बहेलिया सबको मुर्दा समझ कर जमीन पर पटकता गया। सिटी की आवाज के साथ ही हंस उड़ गए।
बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।
वरिष्ठजन घर की धरोहर है। वह हमारे संरक्षक एवं मार्गदर्शक है। जिस तरह आँगन में पीपल का वृक्ष फल नहीं देता परंतु छाया अवश्य देता है। उसी तरह हमारे घर के बुजुर्ग हमें भले ही आर्थिक रूप से सहयोग नहीं कर सकते, परंतु उनसे हमें संस्कार एवं अनुभव से कई बातें सीखने को मिलती है।
बड़े बुजुर्ग परिवार की शान है, वह कोई कूड़ा करकट नहीं जिसे की परिवार से बाहर निकाल फेंका जाए।
अपने प्यार से रिश्तों को सींचने वाले इन बुजुर्गों को भी बच्चों से प्यार और सम्मान मिलना चाहिए। अपमान और तिरस्कार नहीं। अपने बच्चों के खातिर अपना जीवन दाव पर लगा चुके इन बुजुर्गों को अब अपनों के प्यार की जरूरत है। यदि हम इन्हें अपने परिवार में स्थान देंगे तो वह लाभान्वित ही होंगे ऐसा न करने पर हम अपने हाथों अपने बच्चों को उस प्यार, संस्कार, आशीर्वाद व स्पर्श से वंचित कर रहे हैं जो उनकी जिंदगी को संवार सकता है।
याद रखिए किराए से भले ही प्यार मिल सकता है परंतु संस्कार, आशीर्वाद व दुआएं नहीं। यह सब तो हमें मां-बाप से ही मिलती है।