25 सितम्बर - पंडित दीन दयाल उपाध्याय जयंती

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के बारे में प्रसिद्ध है एक बार परम् पूजनीय सरसंघचालक गुरु जी ने इनसे पूछा आप राजनीतिक क्षेत्र में है वहाँ कैसा लग रहा है तो इन्होंने कहा वहाँ मन नही लग रहा है तब गुरु जी ने कहा कि जब लगेगा तो आपको वापस बुला लेंगे। ऐसा था उस सदी के दो महान व्यक्तित्वों का वार्तालाप।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व और प्रखर चिंतक थे। इनका जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा से 25 किलोमीटर दूर एक गांव नगला चंद्र भान के एक अति निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम भगवती प्रसाद और माता जी का नाम रामप्यारी था। बचपन मे ही इनके माता और पिता का देहांत हो गया था। इनके नानाजी इनको लेकर सीकर राजस्थान आ गये।

इन्हें पढ़ने का बहुत शौक था जीवन मे कितने भी उतार चढ़ाव आये पर इन्होंने पढ़ाई को नही छोड़ा । मैट्रिक इन्होंने सीकर हाई स्कूल से किया। इंटर की पढ़ाई पिलानी के बिड़ला कॉलेज से की। सीकर के महाराज ने इनको एक स्वर्ण पदक तथा 250/- रुपये का नकद पुरस्कार एवं 10 रुपये की मासिक छात्रवृति प्रदान की। कानपुर के सनातन धर्म कालेज से इन्होंने बी ऐ की पढ़ाई की।

1937 में इनका सम्पर्क श्री बलवंत महाशब्दे से हुआ और ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए। एम ए करने के लिये ये आगरा चले गए यहां ये श्री नानाजी जी देशमुख जी के साथ संघ की गतिविधियों में भाग लेने लगे। 1942 में ये श्री भाऊ देवरस जी के पास गए और अपने जीवन को पूर्णकालिक संघ सेवा के लिये अर्पित किया।

इनके बारे में बचपन की एक कहानी प्रसिद्ध है कि डकैत इनके घर मे लूटपाट के लिये आये तो ये निर्भीकता से उनके सामने खड़े हो गए और बोले कि डाकू लोग तो गरीबो की सहायता करते है उन्हें लूटते थोड़े ही है। इतना सुन कर वो डकैत बिना लूटपाट के वहाँ से चले गए। मतलब बचपन से ही निर्भीकता से अपनी बात रखते थे।

1947 में श्री भाऊरॉव देवरस जी की प्रेरणा से इन्होंने राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना की। पाञ्चजन्य पत्रिका और दैनिक स्वदेश का प्रकाशन लखनऊ से किया।

1951 में एक राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। 15 वर्षो तक लगातार इसके राष्ट्रीय महामंत्री रहे।

इनके बारे में प्रसिद्ध है एक बार परम् पूजनीय सरसंघचालक गुरु जी ने इनसे पूछा आप राजनीतिक क्षेत्र में है वहाँ कैसा लग रहा है तो इन्होंने कहा वहाँ मन नही लग रहा है तब गुरु जी ने कहा कि जब लगेगा तो आपको वापस बुला लेंगे। ऐसा था उस सदी के दो महान व्यक्तित्वों का वार्तालाप।

इन्होंने दो दर्शन का सूत्रपात किया।

एकात्म मानववाद : हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केंद्र मानव होना चाहिये " जो यत पिंडे तत ब्रह्माण्डे " पर आधारित है। भौतिक उपकरण मानव के सुख के साधन है साध्य नही।

अंत्योदय : अंत्योदय का मतलब है हम जो भी नियम बनाये तो ये सोचकर बनाये की इसका लाभ पंक्ति के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को मिल रहा है कि नही।

11 फरवरी 1968 को मुगल सराय रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म पर इनका शव मिला। एक महान दार्शनिक, विचारक, सागर सी गहरी सोच रखने वाला, आकाश जैसा व्यक्तित्व 51 वर्ष की आयु में भारत माँ को अपना सर्वस्व अर्पण कर हमारे बीच से चला गया। उनको हमारा शत शत नमन।

 

इंद्रप्रस्थ संवाद - नवीन अंक

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