एक बहुत बड़े परिवार में जन्म लेने के बाद भी सबकुछ त्याग कर अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह जी का सारा जीवन सादगी, मितव्ययता, ईमानदारी, प्रमाणिकता, ध्येयनिष्ठा और कर्मठता के साथ बिता। संघ परिवार में उन्हें प्यार के साथ रज्जू भैया कहा जाता था।
एक बहुत बड़े परिवार में जन्म लेने के बाद भी सबकुछ त्याग कर अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह जी का सारा जीवन सादगी, मितव्ययता, ईमानदारी, प्रमाणिकता, ध्येयनिष्ठा और कर्मठता के साथ बिता। संघ परिवार में उन्हें प्यार के साथ रज्जू भैया कहा जाता था।
उनकी सादगी के अनेक किस्से लोगों को याद है। वह जब भी संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए जाते तो ट्रेन में ही मंजन कुल्ला कर लेते थे और वहीं से तैयार होकर सीधे कार्यक्रम स्थल पर कार्यकर्ताओं के बीच पहुंच जाते थे। एक बार वह संघ के एक कार्यक्रम में भागलपुर जा रहे थे। रात के समय सारा काम निपटा कर वह सो गए। साथ चल रहे कार्यकर्ता ने जब सुबह देखा तो उनकी बर्थ पर एक बालक सोया हुआ था। जबकि वह स्वयं एक अन्य यात्री की बर्थ के किनारे पर बैठे हुए थे। दरअसल रात के वक्त जब रज्जू भैया टॉयलेट के लिए उठे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा बालक ट्रेन के दरवाजे के पास बैठा हुआ ठंड से सिकुड़ रहा है। उन्होंने बालक का हाथ पकड़ा और अपनी बर्थ पर लाकर सुला दिया। सुबह बालक को चाय बिस्कट दिए। ट्रेन जब पटना पहुंची तो बालक को एक कार्यकर्ता के सुपुर्द करते हुए उन्होंने उसके घर तक पहुंचाने का निर्देश दिया।
एक बार नागपुर प्रवास के समय रज्जू भैया तेज ज्वर से पीड़ित थे। मगर उन्होंने किसी को अपने बुखार के बारे में नहीं बताया था। एक कार्यकर्ता ने जब उन्हें छूकर देखा तो पता चला कि तीन दिन से वह तेज बुखार से ग्रस्त हैं। कार्यकर्ता ने उनसे कार्यक्रम में शामिल न होने का आग्रह किया और आराम करने को कहा। मगर वह नहीं माने और बोले मुझे बैठकर ही तो बोलना है। इतने कार्यकर्ता आएं है मैं जरूर जाऊंगा। वह हमेशा संघ के कार्यकर्ताओं से कहते थे स्वयंसेवकों में दो मूल बातें जरूर होनी चाहिए पहली सभी को साथ लेकर चलना एवं दूसरी स्वयं को लक्ष्य के पीछे रखना। बचपन से ही रज्जू भैया को मातृभूमि से गहरा लगाव था। वह विज्ञान के बहुत प्रखर छात्र थे। पढ़ाई लिखाई में वह हमेशा अव्वल आते थे। मगर समाज के तमाम वैभवों को त्याग कर उन्होंने संघ का प्रचारक बनना स्वीकार किया। 1947 में देश में जब आणविक शोध संस्थान की नींव रखी गई तो डॉ.होमी जहांगीर भाभा ने प्रोफसर सीवी रमन से कहा कि किसी भी तरह राजेन्द्र सिंह को इस संस्थान के साथ जोड़ लो। प्रोफेसर रमन ने जब उनसे बातचीत की तो रज्जू भैया ने जवाब दिया मेरी प्राथमिकताए बहुत अलग है। मैं सप्ताह में 7 दिन काम करने वाली नौकरी नहीं कर सकता। मैं केवल 3 दिन छात्रों को पढ़ाने के लिए देता हूं। बाकी समय में संघ का काम करता हूं। भाभा जी ने जब यह बात नेहरू जी को बताई। और कहा कि अगर राजेन्द्र सिंह जैसा प्रतिभाशाली वैज्ञानिक हमें मिल जाए तो हमारा शोध तेज गति से बढ़ेगा। नेहरू जी ने उनसे कहा कि आप मुंह मांगी तनख्वाह पर उन्हें बुला लो। इस पर भाभाजी ने कहा पैसा उनकी प्राथमिकता नहीं है उनकी प्राथमिकता भारत का समाज है।
रज्जू भैया का जन्म एक बहुत बड़े परिवार में हुआ था। उनके पिता सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता थे। घर में हर तरह की सुख सुविधा थी मगर रज्जू भैया को भौतिकवादी वस्तुओं से कतई लगाव नहीं था। हालांकि वह भौतिक शास्त्र के उच्चकोटि के छात्र थे। एमएससी की प्रायोगिक परीक्षा में उन्होंने रमन इफेक्ट पर प्रयोग किया था जिसे देखकर सीवी रमन इतने प्रभावित हुए कि उन्हें 100 में से 100 अंक दिए। 1942 में रज्जू भैया का संघ के साथ नाता जुड़ गया था। एमएससी करने के साथ ही उन्होंने तय कर लिया था वह आजीवन संघ की सेवा करेंगे। 1943 में काशी में संघ के शिक्षावर्ग में वह संघ के सरसंघचालक पूजनीय श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी के संपर्क में आए। जिसके बाद गुरु जी के साथ उनका संबंध प्रगाढ़ होता चला गया। संघ के सर्वोच्च पद पर रहते हुए भी वह हमेशा सहज और सर्वसुलभ रहते थे। जब उन्होंने संघ के सरसंघचालक का दायित्व संभाला तो प्रसिध्द पत्रकार रूसी करंजिया उनसे मिलने नागपुर आए। दोनों के बीच चर्चा हो रही थी तभी भोजन की घंटी बज गई। रज्जू भैया ने करंजिया से कहा चलो पहले भोजन कर लेते हैं। भोजन कक्ष में टाटपट्टी पर रज्जू भैया के साथ वह भी बैठ गए। इसी बीच रूसी करंजिया ने रज्जू भैया की बगल में बैठे व्यक्ति से उनका परिचय पूछा तो उसने कहा मैं माननीय रज्जू भैया जी की कार का चालक हूं। यह देखकर करंजिया चौक गए संघ को लेकर उनकी जो गलतफहमी थी सब खत्म हो गई। भोजन के बाद जब वह रज्जू भैया के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा हां तो करंजिया जी पूछिए हमारे संगठन के बारे में आपको क्या पूछना है। करंजिया जी ने हाथ जोड़कर कहा साहब अब मुझे कुछ नहीं पूछना मैंने स्वयं अपनी आंखों से सब देख लिया। जिस संगठन में सरसंघचालक और कार चालक एक ही टाटपट्टी पर बैठकर भोजन करते हैं उसके बारे में क्या पूछना। करंजिया के इस जवाब पर रज्जू भैया ने कहा यही तो संघ की सरलता है जिसका प्रसार सारे समाज में करना है।

नरेन्द्र कुमार वर्मा


