भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नायक थे तिलका मांझी। अतुलनीय राजनीतिक मेधा संपन्न तिलका मांझी ने ही सर्वप्रथम संथालो को अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति की जानकारी दी।
तिलका मांझी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में तिलकपुर नामक गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था। इनका वास्तविक नाम जबरा पहाड़िया था। तिलका मांझी नाम उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दिया था। तिलका का अर्थ होता है गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला और वे अपने ग्राम के प्रधान थे, इसलिए उन्हें मांझी भी कहा गया। क्योंकि पहाड़ियां समुदाय में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर पुकारा जाता है।
21 वर्ष का नौजवान 1771 से 1784 तक ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ लगातार लड़ता रहा। 1778 में अपने पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया था।
वर्ष 1770-71 में जब भीषण अकाल पड़ा तो तिलका ने अंग्रेजी शासन का खजाना लूट कर आम गरीब लोगों में बांट दिया था। इसी के साथ उनका अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह (हूल) शुरू हुआ। अपने विद्रोह के दौरान तिलका ने ना कभी समर्पण किया, ना कभी झुके और ना ही डरे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नायक थे तिलका मांझी। अतुलनीय राजनीतिक मेधा संपन्न तिलका मांझी ने ही सर्वप्रथम संथालो को अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति की जानकारी दी। महावीर तिलका मांझी ने ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए पहाड़ियां तथा संथाल सभी को साथ लेकर युद्ध प्रारंभ किया। नारा दिया था ‘धरती हमारी है’। उन्होंने 13 जनवरी 1784 को भागलपुर में नियुक्त ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी अगस्टस क्लीवलैंड वध कर दिया। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण वे युद्ध जारी नहीं रख पाए और अंततः पकड़े गए।
अंग्रेज अधिकारी के वध के जुर्म में उन्हें पकड़कर चार घोड़ों से बांधकर घसीट कर भागलपुर ले जाया गया और 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटका कर भागलपुर में ही फांसी दे दी गई थी।
संथाल लोकगीतों में बाबा तिलका मांझी का शौर्य और बलिदान आज भी जीवित है।

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