बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ही रानी लक्ष्मीबाई को राष्ट्र पर बलिदान होने की प्रेरणा दी थी। 1855 में स्वामी जी भारत भ्रमण पर थे। वह सारे देश में घूम-घूम कर अंग्रेजों के अत्याचारों को देख रहे थे।
प्रखर ऱाष्ट्रप्रेमी, वैदिक संस्कृति के वाहक और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने हिंदू संस्कृति पर हमला करने वालों को अत्यंत शक्तिशाली तरीके से उत्तर दिया। सामाजिक सुधार की दृष्टि से उनका घरवापसी या शुध्दिकरण आंदोलन हमेशा ईसाई मिशनरियों और मौलवियों के हौसले को पस्त करता रहा।
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ही रानी लक्ष्मीबाई को राष्ट्र पर बलिदान होने की प्रेरणा दी थी। 1855 में स्वामी जी भारत भ्रमण पर थे। वह सारे देश में घूम-घूम कर अंग्रेजों के अत्याचारों को देख रहे थे।और क्रांतिकारियों से मिल रहे थे। जब वह फर्रूखाबाद, कानपुर, प्रयागराज, मिर्जापुर से होते हुए वाराणसी पहुंचे तो रानी लक्ष्मीबाई को पता चला कि स्वामी जी काशी में प्रवास पर है। झांसी से लक्ष्मीबाई उनसे मिलने काशी पहुंचीं। स्वामी जी से मुलाकात पर लक्ष्मीबाई ने उनसे कहा महर्षि जी अंग्रेजों ने मेरे राज्य पर कब्जा करने का घोषणा कर दी है। मैं एक निस्संतान विधवा हूं। मैं अंग्रेजों का मुकाबला कैसे कर पाऊंगी। स्वामी जी ने रानी लक्ष्मीबाई के अंदर साहस और पराक्रम भरते हुए कहा आप भारतवर्ष की महान पुत्री हैं। निर्भय होकर खड्ग उठाओ और फिरंगियों पर टूट पड़ो। मातृभूमि की रक्षा करते हुए अगर तुम्हारा सर्वस्य न्योछावर हो जाएगा तो तुम्हारा अमर बलिदान सदियों तक याद किया जाएगा। तुम साहस के साथ इन विदेशियों का मुकाबला करो।
महर्षि दयानंद जी के आशीर्वाद से रानी लक्ष्मीबाई के अंदर साहस और पराक्रम का संचार पैदा हुआ और उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह कर तलवार उठाने का संकल्प लिया।

नरेन्द्र कुमार वर्मा



