रानी गाइदिन्ल्यू जन्म जयंती: हमने सहेजा है तेरी वीरता को

सीमा ओझा

रानी गाइदिन्ल्यू ने इस्लाम एवं ईसाई धर्म को धर्म कहने वाले लोगो को बताया कि इस धरती पर एक मात्र धर्म  मानवधर्म है जिसका नेतृत्व केवल सनातन संस्कृति ही करती है। अतः हमारी भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण विश्व की आद्य संस्कृति है। उनका सन्देश व प्रयास सदियों तक याद किया जाता रहेगा।

अंग्रेजों के द्वारा पोषित ईसाई धर्म का शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर जाकर प्रतिकार करने वाली तथा उत्तर पूर्व के पूरा नागा हिल्स को सनातन धर्म एवं संस्कृति से युक्त करने वाली वीरांगना रानी गाइदिन्ल्यू का 26 जनवरी को जन्म जयंती है।  

रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर राज्य के छोटे से पहाड़ी कस्बे लंकाओं में हुआ था। रानी मां के पिता का नाम लोथोनांग वा मां का नाम केलुवतलिनलयू था।

श्रीमान जगदंबा मल्ल जी ने रानी मां के साथ काफी लंबा समय व्यतीत किया था। मल्ल जी ने रानी मां को जैसे देखा व सुना उसी आधार पर अपने संस्मरण को एक अविस्मरणीय पुस्तक का रूप दिया। यह पुस्तक एक भारतीय बेटी की अविस्मरणीय गौरव गाथा है। इसमें भारतवर्ष के सबसे पूर्वी छोर पर नागा पहाड़ियों की वीरांगना रानी गाइदिन्ल्यू के संपूर्ण जीवन वृत्त को उद्घाटित किया गया है।

माता-पिता के द्वारा उनका गाइदिन्ल्यू नाम रखा गया जो इतिहास तथा भारतीय जन-मानस में “रानी माँ” के रूप में प्रसिद्ध हुईं । “गाई’ अर्थात् अच्छा और “दिन” का अर्थ “मार्ग दिखाना । इस प्रकार गाइदिन्ल्यू का अर्थ है “अच्छा मार्ग दिखाने वाली” । वास्तव में उनका जीवन उनके नाम के ही अनुरूप था। रानी माँ भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए समाज को अच्छा और उचित मार्ग दिखाते हुए ही अपने जीवन को आहुत कर गईं। रानी मां के द्वारा भारतीय परंपराओं की रक्षा के लिए अनेकों प्रयास किए गए। रानी माँ सभी लोगों को सनातन धर्म एवं संस्कृति के प्रति लगातार जागृत करने का कार्य करती रहीं। इसीलिए आज भारतीय समाज रानी मां गाइदिन्ल्यू को माता अहिल्याबाई होलकर, माता जीजाबाई एवं रानी लक्ष्मीबाई की कोटि में सम्मान के साथ स्थान प्रदान करता है।

एक दिन गाइदिन्ल्यू को कांबिरान निवासी जादोनांग के बारे में जानकारी मिली कि वे सनातन धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए अपने समाज के लोगों को जागृत कर रहे हैं। लोगो में हिन्दू धर्म के लिए आस्था कि भावना का विकास कर रहे हैं। गाइदिन्ल्यू ने इस महान व्यक्ति से मिलने की इच्छा व्यक्त की। एक दिन गाइदिन्ल्यू अपने सहयोगियों के साथ कांबीरान जा पहुंची। जादोनांग का यहां पर गाइदिन्ल्यू से मिलना हुआ। दोनों महान विचारवान व्यक्तियों का मिलना ऐसे हुआ की दोनों ने एक साथ कार्य करने का निश्चय कर लिया। दोनों ने सनातन संस्कृति एवं धर्म के प्रति लोगों को घर-घर जाकर जागृत करना प्रारंभ कर दिया। अंग्रेजो के द्वारा चलाए जाने वाले ईसाइयत कार्यक्रम का अब पहाड़ों पर विरोध शुरू हो गया । इसाई धर्म में परिवर्तन का कार्यक्रम असफल होता नजर आने लगा। अंग्रेजों ने इन दोनों को कैद करनी की सोची। परिणाम स्वरूप सरकारी पुलिस के द्वारा इन्हें अब दिन -रात ढूंढा जाने लगा। गाइदिन्ल्यू और जड़ोनांग को पहाड़ों पर बहुत समर्थन मिला, सामान्यजन ने अपने नेता को बचाने में जी—जान लगा दी। । सामान्य जन इन्हें ‘महान हलचल’ के नाम से पुकारने लगे। एक दिन अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जादोनांग को गिरफ्तार कर लिया गया।

अब गाइदिनल्यू ने अकेले ही जादोनांग के अधूरे कार्य का बीड़ा अपने सिर पर उठा लिया। अब बहुत बड़ी संख्या में लोग रानी गाइदिन्ल्यू से जुड़ने लगे। पूरा नागा हिल्स सनातन धर्म एवं संस्कृति से युक्त हो उठा। अब ईसाई मिशनरी बहुत परेशान हो गए। धर्मांतरण के लिए उनके द्वारा दिए गए प्रलोभन धरे के धरे रह गए।

गाइदिन्ल्यू के द्वारा किए गए अनेकों सामाजिक प्रयासों को संपूर्ण नागा पहाड़ी वासियों ने एक चमत्कार समझा और तत्कालीन समय में स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने वाले नेताओ ने रानी गाइदिन्ल्यू से मुलाकात की। एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू गाइदिन्ल्यू से मिलने मणिपुर आये वे गाइदिन्ल्यू से  इतने प्रभावित हुए की उन्होंने गाइदिन्ल्यू को पूर्वी भारत की रानी कह कर संबोधित किया। उसी समय से सामान्य बोलचाल में गाइदिन्ल्यू को रानी के उपनाम से पुकारा जाने लगा। वास्तव में रानी गाइदिनल्यू उत्तर- पूर्वी भारत में भारतीय संस्कृति की रक्षा के निमित नागरिकों को निरन्तर प्रेरित करती रही। इसी प्रेरणा के कारण वहां का सामान्य से सामान्य मानव भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता पर गर्व करने लगा। यह सब अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के लिए खतरा लगने लगा और उन्होंने पूर्वी भारत के ही एक सदस्य फुजो को रानी गाइदिनल्यू के द्वारा संचालित कार्यक्रम के विरोध स्वरूप ताकत के साथ तैयार किया। अब अंग्रेज परस्त फुजो नागाओं के लोगो को धन के माध्यम से ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का बहुत बड़ा कार्यक्रम का संचालित किया गया। रानी गाइदिन्ल्यू को जेल में डाल दिया।

स्मरण रहे, इसी प्रकार का धर्म परिवर्तन का कार्यक्रम भारत की धरती पर अनेकों बार हुआ। प्राचीन समय से ही शक, कुषाण, पलव, पार्थियन आदि भारत विरोधी ताकतों ने भारत के छोटे छोटे भागों पर कई बार आक्रमण किया। यहां उनका शासन भी रहा परंतु एक समय उन्हें इसी धरती की संस्कृति में अपना पूर्ण विलय करना ही पड़ा। रानी गाइदिन्ल्यू उत्तर पूर्व के लोगो को इन सब बातों से, तथ्यों से निरंतर अवगत कराती रही। बहुत बड़ी संख्या में आज भी उत्तर पूर्व के लोग हिन्दू धर्म और संस्कृति को मानते हैं। रानी गाइदिन्ल्यू ने इस्लाम एवं ईसाई धर्म को धर्म कहने वाले लोगो को बताया कि इस धरती पर एक मात्र धर्म  मानवधर्म है जिसका नेतृत्व केवल सनातन संस्कृति ही करती है। अतः हमारी भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण विश्व की आद्य संस्कृति है। उनका सन्देश व प्रयास सदियों तक याद किया जाता रहेगा।

दुर्भाग्य का विषय यह है कि कई वर्षों तक गाइदिन्ल्यू को जेल में ही रहना पड़ा। विरोधी ताकतों के द्वारा महान स्वतंत्रता सेनानी को भारत विरोधी करार दिया गया था। एक बार रानी गाइदिन्ल्यू संघ के द्वितीय सरसंघचालक एमएस गोलवलकर (गुरूजी) से मिली। गाइदिन्ल्यू ने गुरुजी को अपनी बात ठीक प्रकार से समझाया। गुरुजी ने रानी मां को भारत के वास्तविक बेटी माना। वास्तव में हमारे राष्ट्र में भारतीयता की रक्षा के लिए अनेकों प्रयास हुए परंतु अंग्रेजियत से प्रभावित लोगों ने उसे वह स्थान नही दिया जिसका की वह अधिकारी थीं। समय आ गया है कि हम  भारतीयता को सुरक्षित व संवर्धित करने के उनके प्रयासों  का आज पुन: स्मरण कर श्रद्धाभाव से उन्हें भारत के इतिहास में वह स्थान दें जिससे आने वाली पीढ़ियां भी भारत की इस बेटी के जीवन से प्रेरणा ले सके।

 

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