संत रविदास जयंती हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा पर मनाई जाती है। इस बार ये दिन रविवार, 5 फरवरी को है।
संतों के सहज, सरलता, उदारता, निस्पृहता, संतुष्टि आदि गुणों को समेटे महान संत रविदास जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है। संत रविदास 15 वीं शताब्दी के एक सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे। रविदास एक महान संत और समाज सुधारक के साथ-साथ ईश्वर के अनुयायी, दर्शन शास्त्री और एक महान कवि थे। संत रविदास जी रैदास के नाम से भी जाने जाते है। निर्गुण सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत रविदास जी अपनी स्वरचना के माध्यम से अपने अनुयायियों और समाज के लोगों को सामाजिक और आध्यात्मिक सन्देश दिया। लोग उन्हें मसीहा मानते थे।
रविदास जी ने लोगों को ईश्वर के प्रति प्रेम करना सिखाया
भक्तिकालीन संत व कवि रविदास का जीवन व उनकी शिक्षाएं अत्यंत प्रेरक हैं। वे महान आध्यात्मिक समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा, मनोवांक्षित जन्म किसी के वश की बात नहीं है। जन्म ईश्वर के हाथ में है। सभी ईश्वर की संतान हैं अत: जन्म के आधार पर भेदभाव करना ईश्वर की व्यवस्था को नकारने जैसा है। वे कहते हैं- रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच। नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच।।
उन्होंने घृणा का प्रतिकार घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से किया। हिंसा का हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा और सद्भावना से किया। इसलिए वे प्रत्येक व्यक्ति के प्रेरणास्त्रोत बने। उन्होंने निर्भीकता से अपनी बात कही। समाज को नई राह दिखाई और कुरीतियों को दूर करने के लिए सच और साहस को आधार बनाया। संत रविदास को वेदों पर अटूट विश्वास था। वे सभी को वेद पढ़ने का उपदेश देते थे।
संत रविदास जयंती हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा पर मनाई जाती है। इस बार ये दिन रविवार, 5 फरवरी को है।
रविदास जी की कविताओं की भाषा जनसाधारण में लोकप्रिय ब्रजभाषा थी। जब उत्तर भारत में मुगलों का शासक था व चारों तरफ अशिक्षा व भ्रष्टाचार व्याप्त था और धर्मांतरण की प्रक्रिया द्वारा हिंदूओं को मुसलमान बनाया जा रहा था, उस समय रविदासजी की ख्याति चारों तरफ फैल रही थी।
मुसलमान बनना स्वीकार नहीं
संत रैदास को मुसलमान बनाने से उनके लाखों भक्त भी मुसलमान बन जायेंगे ऐसा सोचकर धर्मपरिवर्तन के लिए उन पर अनेक प्रकार के दबाव आये, किन्तु संत रैदास की श्रद्धा और निष्ठा अटूट थी। सदना पीर इनको मुसलमान बनाने आया था, किन्तु इनकी ईश्वर-भक्ति और आध्यत्मिक-साधना से प्रभावित होकर सदना पीर हिन्दू होकर रामदास नाम से उनका शिष्य बन गया।
इस विषय पर उनकी दृष्टि तथा सोच स्पष्ट है :
वेद वाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ज्ञान।
यह सच्चा मत छोड़कर, मैं क्यों पहूं कुरान।
ऐसे महान संत रविदास जी का नाम संत साहित्य में सदैव स्मरणीय रहेगा।

डॉ. मंजरी गुप्ता


