हिंदुत्व के प्रहरी, राष्ट्रभक्त एवं जननायक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज

डॉ. संजय वर्मा

भारतीय इतिहास के महानायकों में से एक मराठा गौरव, हिन्दू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में चैत्र  कृष्ण तृतीया (19 फरवरी 1630) को पुणे के पास स्थित शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इस वर्ष 10 मार्च को है शिवाजी महाराज की जयंती।

भारतीय इतिहास के महानायकों में से एक मराठा गौरव, हिन्दू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में चैत्र  कृष्ण तृतीया (19 फरवरी 1630) को पुणे के पास स्थित शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इस वर्ष 10 मार्च को है शिवाजी महाराज की जयंती।

उनके पिता शाहजी भोंसले पहले अहमदनगर के निज़ाम थे और शिवाजी के जन्म के बाद वे बीजापुर के दरबार में नौकरी करने लगे। उनकी माता जीजाबाई धार्मिक प्रवृत्ति की थी जिसका प्रभाव शिवाजी पर बहुत था। मां द्वारा बचपन से ही रामायण, महाभारत और वीरता की कहानियां सुनाने से शिवाजी में धर्म, संस्कार और वीरता के गुण प्रबल हो गए थे।

वे बचपन में अपनी आयु के बच्चों का नेतृत्व कर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। शिवाजी का बचपन का खेल युवावस्था का वास्तविक कर्म बन गया जब उन्होंने पुरंदर और तोरण जैसे किलों को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया। उनके युद्ध कौशल, बहादुरी और निडरता की चर्चा होने लगी, खासकर दक्षिण के राज्यों में। शीघ्र ही यह खबर आगरा और दिल्ली तक भी जा पहुंची। तुर्क, यवन जैसे अत्याचारी और उनके सहायक राजा शिवाजी का नाम सुनकर भयभीत और चिंतित होने लगे।

शिवाजी के युद्धकौशल का प्रताप धीरे-धीरे समूचे भारत में फैल रहा था जिससे आतंकित होकर बीजापुर के शासक आदिलशाह ने उन्हें गिरफ्तार करने की बहुत कोशिश की किंतु असफल होने पर आदिलशाह ने शिवाजी के पिता को गिरफ्तार कर लिया। धार्मिक संस्कारों और पिता के प्रति कर्तव्य को ध्यान में रखकर उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर जल्द ही अपने पिता को कैद से छुड़ाया।

शिवाजी की बढ़ती ताकत और एक-एक कर कई किलों को जीतने से चिंतित बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जिंदा या मृत पकड़ने के लिए अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। शिवाजी की निडरता और बहादुरी से परिचित अफजल खां ने उन्हें पकड़ने के लिए भाईचारे और संधि का झूठा नाटक रचकर उन्हें अपनी बाहों में लेकर मारना चाहा परंतु शिवाजी पहले से ही चौकन्ने थे। उन्होंने अपने हांथों में  छिपे बघनखे से उसे मौत के घाट उतार दिया।

मुगल बादशाह औरंगजेब भी शिवाजी की बढ़ती ताकत से चिंतित होकर दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को शिवाजी के खिलाफ चढाई का आदेश दिया किंतु लड़ाई के दौरान सूबेदार ने अपना पुत्र खो दिया एवं उसकी अंगुलियां काट दी गईं। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। औरंगजेब ने शिवाजी को परास्त करने के लिए अपने सेनापति राजा जयसिंह को 1 लाख सेना के साथ भेजा जिसने शिवाजी को हराने के लिए बीजापुर के सुल्तान से संधि कर ली और 'ब्रजगढ़' के किले पर अधिकार कर लिया। 'पुरंदर के किले' को बचाने में शिवाजी ने अपने वीर सेनानायक मुरार जी बाजी को खो दिया एवं अपने को असमर्थ जानकर उन्होंने राजा जयसिंह से संधि का प्रस्ताव किया जिसे दोनों ने स्वीकार कर लिया और उसे 'पुरंदर की संधि' के नाम से जाना जाता है।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1674 में मराठा साम्राज्य की स्वतंत्र प्रभुसत्ता की नींव रखी। आदिलशाह और मुगलों के अत्याचार से दबी-कुचली हिन्दू जनता को उन्होंने भयमुक्त किया। उनका उद्देश्य राष्ट्र को विदेशी और आतताई शासन से स्वतंत्र कराकर पूरे भारत मे एक सार्वभौम स्वतंत्र शासन स्थापित करने का था।

शिवाजी के साम्राज्य की पूर्वी सीमा उत्तर में बागलना से लेकर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई समस्त सतारा और कोल्हापुर के अधिकांश भाग को समेट लेती थी। बाद में पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्र भी इसमें शामिल हुए। उनके साम्रज्य में 250 किले थे जो मराठा सैन्य व्यवस्था के विशिष्ट लक्षण थे। शिवाजी गुर्रील्ला युद्ध नीति के जनक थे। अपने इस छापामार युद्ध कौशल से उन्होंने बड़ी-बड़ी सेनाओं को परास्त किया था।

शिवाजी एक कुशल शासक थे। उन्होंने अपनी राज्य व्यवस्था के लिए 8 मंत्री नियुक्त किये जिन्हें 'अष्ट प्रधान' कहा जाता था जिसमे 'पेशवा' का पद सबसे महत्वपूर्ण होता था। न्यायव्यवस्था प्राचीन प्रणाली पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। राज्य की आय का साधन भूमिकर था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया जिसे 'शिवराई' कहते थे। यह सिक्का संस्कृत भाषा में था।

 

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