दिल्ली षडयंत्र केस, जिसने अंग्रेज सरकार को हिला दिया

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क्रांतिकारियों में गुस्सा इतना बढ़ा कि उन्होंने तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग को मारने की योजना बनाई। इसके तहत 23 दिसंबर 1912 को चांदनी चौक में हार्डिंग पर बम फेंका गया। लेकिन हार्डिंग इस हमले में बच गए। इसे ही दिल्ली षडयंत्र केस के रूप में जाना जाता है। लार्ड हार्डिंग को निशाने पर लेने की योजना बंगाल के जाने-माने क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के नेतृत्व में बनाया गया था।

स्वाधीनता संघर्ष की जब भी बात होती है, 'दिल्ली षडयंत्र केस' 'लाहौर षडयंत्र केस' 'मेरठ षडयंत्र केस'  और 'अलीपुर षडयंत्र केस' का जिक्र हो ही जाता है। एक सवाल तब उठता है कि आखिर ये षडयंत्र केस क्या हैं? गुलामी के दौर में स्वाधीनता सेनानियों ने आजादी हासिल करने के लिए जो भी कदम उठाए, ब्रिटिश सरकार उन्हें षडयंत्र ही कहा करती थी। राजधानी दिल्ली में तब आजादी के सपने को पूरा करने और अंग्रेज सरकार को चेतावनी देने के लिए एक घटना घटी थी, वह इतिहास में दिल्ली षडयंत्र केस के नाम से विख्यात है।

साल 1911 में ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकात्ता से दिल्ली लाई गई। इस अवसर पर दिल्ली में कई दिनों तक भव्य आयोजन किए गए। दिल्ली के इन आयोजनों में देसी-विदेशी मेहमानों का तांता लगा रहा। इन आयोजनों पर सरकारी स्तर पर पानी की तरह पैसा बहाया गया। वैसे बंग-भंग के बीते सिर्फ छह साल ही हुए थे। लेकिन उस आंदोलन का प्रभाव देश में था। उन दिनों भारत में ब्रिटिश लूट और फिजूलखर्ची भी प्रमुख मुद्दा बन चुकी थी। राजधानी बदलने की घटना के अवसर पर पानी की तरह पैसे बहाए जाने की वजह से क्रांतिकारी रोष में थे। उन्हें लग रहा था कि पानी की तरह जो पैसा बहाया गया, अगर उसे भारतीय जनता पर खर्च किया जाता तो हालात कुछ और होते। 

क्रांतिकारियों में गुस्सा इतना बढ़ा कि उन्होंने तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग को मारने की योजना बनाई। इसके तहत 23 दिसंबर 1912 को चांदनी चौक में हार्डिंग पर बम फेंका गया। लेकिन हार्डिंग इस हमले में बच गए। इसे ही दिल्ली षडयंत्र केस के रूप में जाना जाता है। लार्ड हार्डिंग को निशाने पर लेने की योजना बंगाल के जाने-माने क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के नेतृत्व में बनाया गया था।

दिल्ली में राजधानी लाए जाने के बाद ब्रिटिश राजा जार्ज पंचम का यहां दरबार लगा था। जिसे इतिहास में दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है। उसके बाद वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की दिल्ली में सवारी निकाली गई। इस जुलूस में घोड़े और हाथी पर सवार सशस्त्र सैनिक भी शामिल हुए। जुलूस की अगुआई कर रहे लार्ड हार्डिंग हाथी पर चल रहे थे। उनके ठीक आगे उनकी पत्नी, लेडी हार्डिंग बैठी थी। हाथी पर महावत के अलावा हार्डिंग का एक अंगरक्षक भी बैठा था।

लार्ड हार्डिंग का जुलूस जब चाँदनी चौक पहुंचा, तो ये दृश्य देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। कई महिलाएं चौक पर स्थित एक भवन से यह दृश्य देख रही थी। इन्हीं महिलाओं के बीच बंगाल के क्रांतिकारी बसन्त कुमार विश्वास भी महिला के वेश में शामिल थे। जैसे ही उन्हें मौक़ा मिला, उन्होंने वायसराय पर बम फेंक दिया। इसके बाद वहां जबर्दस्त धमाका हुआ। समूचे इलाके में धुंआ ही धुंआ था। वाइसराय बेहोश होकर हाथी से नीचे गिर गए। बम के छर्रे से हार्डिंग की पीठ, पैर और सिर में काफी चोटें आयीं। हार्डिंग के कंधे पर भी चोट लगी। लेकिन वाइसराय बच गए। इस हमले में उनका महावत मारा गया था। बम से घबराहट फैल गई और जुलूस तितर-बितर हो गया। इसका फायदा उठाकर विश्वास और उनके साथी क्रांतिकारी वहां से भाग निकले।

बम फटने के बाद पुलिस ने क्रांतिकारियों की धर-पकड़ के लिए घेराबन्दी बढ़ा दी। चांदनी चौक के इलाके के संदेहास्पद घरों की तलाशी भी ली गई। फिर भी साथियों समेत बिस्वास पुलिस से बचकर बंगाल पहुँच गए।  26 फ़रवरी 1914 को अपने गाँव परगाछा में जब वे अपने पिता के आखिरी संस्कार में शामिल होने के लिए आए, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में  कोलकाता के राजा बाजार इलाके में एक घर की तलाशी के दौरान पुलिस को इस षडयंत्र में शामिल दूसरे क्रांतिकारियों से जुड़ी कुछ जानकारी मिली। इसके आधार पर मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और भाई बालमुकुंद को बाद में गिरफ्तार किया गया। दिल्ली षडयंत्र केस में तब 13 लोगों को पक़ड़ा गया था। 

दिल्ली षडयंत्र केस की ब्रिटिश सरकार ने जल्दीबाजी में सुनवाई की और क्रांतिकारियों को सजा सुना दी गई। इसके तहत 8 मई 1915 को मास्टर अमीर चंद, भाई बालमुकुंद, मास्टर अवध बिहारी को दिल्ली में फांसी दे दी गई। जबकि बम फेंकने वाले क्रांतिकारी बसंत कुमार विश्वास को 11 मई 1915 को अम्बाला की सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया। इसी केस में 31 मार्च 1916 को हवलदार जलेश्वर सिंह को, जबकि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य मंसा सिंह को 6 अप्रैल 1931 के साथ ही इस केस में शामिल में शफीक अहमद को 20 मई 1940 को मौत की सजा दी गई। दिल्ली षडयंत्र केस में 1944 में छत्तर सिंह,  नजर सिंह, अजायब सिंह, सतेंद्र नाथ मजूमदार, जहूर अहमद और दरोगा मल को भी फांसी दी गई। इसी मामले में अभियुक्त बनाए गए केशरीचंद्र शर्मा को दिल्ली में 3 मई 1945 को सरेआम फांसी दी गई थी।

दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई का मशहूर केंद्र है मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज। आज यह कॉलेज जहां है, वहीं दिल्ली की पुरानी जेल थी। जहां क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया। यही वजह है कि हार्डिंग बम कांड के शहीदों का स्मारक इसी कॉलेज में है।

 

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