भोजन मंत्र, भोजन मंत्र का अर्थ और भोजन मंत्र का महत्‍व

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जिस भोजन से आपका का शरीर निर्मित होता है। उस भोजन के प्रति आप सदैव कृतज्ञ रहें। भारतीय सनातन संस्‍कृति में भोजन को देवता माना गया है और भोजन करने से पहले भोजन मंत्र बोलना आवश्‍यक बताया गया है। ताकि हमारे ह्रदय में भोजन के प्रति सम्‍मान का भाव पैदा हो।

जिस भोजन से आपका का शरीर निर्मित होता है। उस भोजन के प्रति आप सदैव कृतज्ञ रहें। भारतीय सनातन संस्‍कृति में भोजन को देवता माना गया है और भोजन करने से पहले भोजन मंत्र बोलना आवश्‍यक बताया गया है। ताकि हमारे ह्रदय में भोजन के प्रति सम्‍मान का भाव पैदा हो।

आइए जानते है भोजन मंत्र, भोजन मंत्र का अर्थ और भोजन मंत्र का महत्‍व क्‍या होता है।

 

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।१।

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:

 

अर्थ- यह मंत्र गीता में चतुर्थ अध्‍याय का 24 श्‍लोक है। जिसका अर्थ है जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात स्रुवा आदि भी  ब्रह्म है, और हवन किये जाने योग्‍य द्रव्‍य भी ब्रह्म है, और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म ही है। उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाला योगी द्वारा प्राप्‍त किये जाने योग्‍य फल भी ब्रह्म ही है।

 

ॐ सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु।

मा विद्‌विषावहै॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।३।

 

अर्थ- यह बहुत प्रसिद्ध मंत्र जिसे स्‍कूलों में सिखाया जाता है। यह कठोउपनिषद का श्‍लोक है। इस मंत्र का अर्थ है कि हे सर्व रक्षक परमेश्‍वर! हम दोनों (गुरू और शिष्‍य) की साथ साथ रक्षा कीजिए। हम दोनों का साथ साथ पालन कीजिए। हम दोनो साथ साथ शक्ति प्राप्‍त करें। हम दोनों की पढी हुई शिक्षा ओजमयी हो। हम परस्‍पर कभी द्वेष न करें। त्रिविध तापों की शाति हो।।

 

भोजन मंत्र हिंदी में

 

अन्न ग्रहण करने से पहले

विचार मन मे करना है

किस हेतु से इस शरीर का

रक्षण पोषण करना है।

हे परमेश्वर एक प्रार्थना

नित्य तुम्हारे चरणों में

लग जाये तन मन धन मेरा

विश्व धर्म की सेवा में ॥

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