गुरु गोबिंद सिंह जी प्रकाश पर्व

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गुरु गोबिंद सिंह जी ने देश-धर्म की रक्षा के लिए अपने चार पुत्रों अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह व जोरावर सिंह को बलिदान कर दिया। इस पर उन्होंने कहा कि - इन पुत्रन के सीस पर वार दिए सुत चार, चार मुए तो क्या हुआ जीवत कई हजार।  

दशमेश गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व है। गुरु गोविंद सिंह जी धर्म रक्षा,शौर्य और न्याय की भावना का प्रतीक हैं। वह मुग़लों द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार के विरुद्ध दृढ़ता के साथ खड़े हुए और इसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। उन्हे ऐसे परम बलिदान के लिए याद किया जाता है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उन्हें प्रायः 'सरबंस दानी' के रूप में याद किया जाता है क्योंकि उनके पिता, मां और चारों बेटों सहित पूरे परिवार ने औरंगजेब के विरुद्ध धर्म युद्ध में वीरगति प्राप्त की।

गुरु गोबिंद सिंह, गुरु तेग बहादुर (नौवें सिख गुरु) और माता गुजरी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म पटना, बिहार में हुआ था।

गुरु तेगबहादुर जी ने कहा कि देश-धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष को बलिदान करना होगा। पास ही बैठे उनके पुत्र गोबिंद राय ने कहा पिता जी आपसे बड़ा महान कौन होगा। पिता गुरु तेगबहादुर जी के महान बलिदान के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी दशवें सिख गुरु बने।

औरंगजेब का फरमान था कि सभी सिख इस्लाम में धर्मांतरित हो जाय अन्यथा उन्हें मार दिया जाएगा। दिसंबर 1705 के चमकौर की लड़ाई में गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े बेटों अजीत सिंह और जुझार सिंह को युद्ध में संघर्ष करते हुए वीरगति प्राप्त हुई । गुरु के छोटे बेटों जोरावर सिंह (आयु 9 वर्ष) और फतेह सिंह (आयु 7 वर्ष) और   गुरु गोविंद सिंह की माँ माता गुजरी को सरहिंद के सूबेदार वजीर खान द्वारा पकड़ लिया गया। तीनों को इस्लाम में धर्मांतरित होने या मृत्यु का सामना करने में से एक चुनने के लिए कहा गया किन्तु वे धर्म के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहे। 11, दिसंबर, 1705 को गुरु के दोनों बेटों को एक दीवार में जिंदा चिनवाने का आदेश दिया गया, किन्तु दीवार की ईंट उनके सिर को ढकने से पहले ही ढह गई, जिसके बाद उन्हें अगले दिन मार डाला गया। माता गुजरी जी को दिसंबर के बहुत ठंडे महीने में बिना किसी गर्म कपड़ों के चारों तरफ से खुले एक बुर्ज के ऊपर कैद कर लिया गया था । माता गुजरी जी ने भी सिख परंपरा का निर्वहन करने हुए बिना किसी शिकायत के गुरु की बानी गाते हुए अपने पोतों के साथ वीरगति प्राप्त की।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने देश-धर्म की रक्षा के लिए अपने चार पुत्रों अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह व जोरावर सिंह को बलिदान कर दिया। इस पर उन्होंने कहा कि - इन पुत्रन के सीस पर वार दिए सुत चार, चार मुए तो क्या हुआ जीवत कई हजार।  

गुरु गोबिंद सिंह जी ने वर्ष 1699 को बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की।  

उन्होंने सिखों की पवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रंथ साहिब को संपूर्ण किया तथा उन्हें सिख पंथ के ग्यारहवें गुरु रूप में सुशोभित किया। 

 

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