शहीद-ए-आजम भगत सिंह

निखिल मिश्रा

भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा गांव में सरदार किशन सिंह और विद्यावती माता के यहां हुआ। 1916 में भगत सिंह ने पढ़ाई के लिए लाहौर के दयानंद आर्य विद्यालय में दाखिला लिया। पढ़ाई के समय ही उनका उनका सम्पर्क लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस जैसे महान क्रांतिकारियों से हुआ।

भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा गांव में सरदार किशन सिंह और विद्यावती माता के यहां हुआ। 1916 में भगत सिंह ने पढ़ाई के लिए लाहौर के दयानंद आर्य विद्यालय में दाखिला लिया। पढ़ाई के समय ही उनका उनका सम्पर्क लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस जैसे महान क्रांतिकारियों से हुआ। 1919 में ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए रोलेट एक्ट को लागू किया था। रोलेट एक्ट के लागू होते ही भारतीयों की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार खत्म हो गए थे। इस काले कानून के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोगों की सभा हुई। अंग्रेजों ने बाग में एकत्र हजारों लोगों पर बिना चेतावनी के गोली बरसाना शुरू कर दिया। मौके पर हजारों लोग मारे गए और घायल हो गए इस समय भगत सिंह की उम्र महज 12 वर्ष थी।

इस घटना ने उन्हें झकझोर दिया। उन्होंने जलियांवाला बाग जाकर मैदान में खून से सनी मिट्टी के सामने शपथ ली कि इस हत्याकांड के किसी भी दोषी को नही बख्शेंगे। 13 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे। उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों के साथ साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। लाहौर के नेशनल कालेज में वह भगवती चरण , सुखदेव, और अन्य क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए। घर वालों ने उनके विवाह के लड़की देखना शुरू किया मगर उन्होंने कहा कि वह भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करा कराने के बाद ही विवाह के बारे में सोचेंगे। 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय ने एक शांतिपूर्ण जलूस निकाला। इस जलूस पर अंग्रेजों ने पूरी बर्बरता के साथ लोगों पर लाठियां चलाई। पुलिस के लाठीचार्ज में लाजपत राय को गंभीर चोटें आई। और कुछ दिनों बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।

लालाजी की मृत्यु के बाद भगत सिंह का खून खौल उठा उन्होंने अपने साथियों के साथ लालाजी की हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया।

8 मई 1929 को भगत सिंह अपने सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ सेंट्रल असेम्बली में बम फोड़ने गए थे। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देते हुए दोनों पब्लिक गैलरी में पहुंचने में कामयाब हो गए। दोपहर के लगभग साढ़े बारह बजे जैसे ही बिल का प्रस्ताव पेश किया जाने लगा। उसी समय भगत सिंह और बीके दत्त खड़े हुए और एक एक कर दोनों बम हाल की खाली बेंच की तरफ उछाल दिए। जोरदार धमाके के साथ पूरा हॉल धुएं से भर गया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जोरदार आवाज में 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगाने लगे। दोनों ने हाथ में लिए हुए कई पर्चे हवा में उछाले। दोनों क्रांतिकारी चाहते तो आराम से भाग सकते थे। मगर वह बड़े इरादे के साथ सेट्रंल असेंबली में आए थे। इसलिए कुछ ही देर में दोनों ने खुद को गिरफ़्तार करवा लिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में यह घटना स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं।

असेंबली में धमाका करने के आरोप में सरदार भगत सिंह और बीके दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। मगर लाहौर में अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई।

निर्धारित तिथि से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी सरकार द्वारा भगत सिंह एवं उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव फांसी दे दिया गया। इंकलाब जिंदाबाद के नारा साथ भारत माँ के इन वीर सपूतों ने फांसी के फंदे को अपने गले में डाल लिया। भगत सिंह जैसे वीर सपूत कभी मरते नहीं हैं वर्षों बाद वह आज भी भारतीय नौजवानों की हृदय में जिंदा हैं और नवयुवक उनसे आज भी प्रेरणा लेते हैं।

 

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