देवऋषि नारद एक अत्यंत विद्वान, मर्मज्ञ और भक्ति प्रवृत्ति वाले संवादवाहक थे। आज के युग में देवऋषि नारद जी का स्मरण बार-बार इसलिए होता है, क्योंकि देवऋषि ने जिस तरह से गड़बड़ियों, खामियों की तरफ ध्यान दिलाते हुए सूचनाओं के माध्यम से समाज के जागरण का काम किया। आज के युग में भी हमें ऐसे ही संदेशवाहकों की जरूरत हैं।

देवऋषि नारद को इस सृष्टि का प्रथम संवाद वाहक अर्थात पत्रकार होने का गौरव प्राप्त हैं। ऋषियों के संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने का कार्य देवऋषि नारद ही करते हैं। उन्हें भगवान इंद्र के सलाहकार होने का भी गौरव प्राप्त है। देवऋषि को सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा जाता हैं। भगवान विष्णु का उनसे अनन्य प्रेम है इसलिए वह सदा नारायण-नारायण का घोष करते रहते हैं। देवऋषि नारद को बेहद अध्ययनशील एवं गुणी माना जाता है।
प्राचीन काल में देवऋषि नारद सतत् सर्वत्र भ्रमण करते हुए अलग-अलग जगह की बहुत सारी सूचनाओं को एकत्र कर विभिन्न लोगों तक पहंचाते थे। देवऋषि नारद एक अच्छे भविष्यवेत्ता भी थे। इसलिए कभी-कभी वह भूतकाल की सूचनाएं भी लोगों तक पहुंचा देते थे। यह कार्य देवऋषि निरपेक्ष भाव से लोकहित में धर्म एवं न्याय की स्थापना के लिए ही करते थे। देवऋषि नारद को इसलिए ही सृष्टि का प्रथम संवादवाहक (संवाददाता) माना जाता हैं। नारद जी से प्राप्त सूचनाओं को हर व्यक्ति पूरी गंभीरता के सुनते थे क्योंकि देवऋषि की सूचनाएं अभिनव, तत्पर और परिणामकारक होती थी।
देवऋषि नारद एक अत्यंत विद्वान, मर्मज्ञ और भक्ति प्रवृत्ति वाले संवादवाहक थे। आज के युग में देवऋषि नारद जी का स्मरण बार-बार इसलिए होता है, क्योंकि देवऋषि ने जिस तरह से गड़बड़ियों, खामियों की तरफ ध्यान दिलाते हुए सूचनाओं के माध्यम से समाज के जागरण का काम किया। आज के युग में भी हमें ऐसे ही संदेशवाहकों की जरूरत हैं। समाज को ठीक दिशा में ले जाना, समाज में विचार प्रक्रिया को सही दिशा देना आज संपूर्ण मीडिया जगत का कर्तव्य है।
देवऋषि को लेखन कला एवं बोलचाल में दक्ष समझा जाता है। उनके द्वारा दी गई सूचनाओं से कभी समाज का अहित नहीं हुआ। नारद जी अपने हर संदेश को बहुत सोच समझ कर ही प्रसारित करते थे। कड़वी से कड़वी बात को वह बहुत सोच समझ कर मीठी बोली में कह देते थे। देवऋषि ने ही मथुरा के राजा कंस को आकाशवाणी के संदेश का अर्थ समझाते हुए नारायण के पृथ्वी पर अवतार लेने की सूचना दी थी। भक्त प्रह्लाद, अंबरीष और ध्रुव को उन्होंने ही भगवान विष्णु की भक्ति करने का संदेश दिया था।
देवऋषि नारद गंर्धव लोक, आदित्य लोक, चंद्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक, इंद्रलोक, प्रजापतिलोक एवं ब्रहमलोक में सतत भ्रमण करते रहते हैं। वह देवों और असुरों के साथ एक ही भाषाशैली में बातचीत करते है। इसलिए सब उनकी बातों के अर्थ को तुरंत समझ जाते है। वह दानवों के साथ ही देवों के बीच भी समान लोकप्रिय है। देवऋषि को इतिहास, व्याकरण, ज्योतिष, योग, भूगोल, खगोल, संगीत और वेदांग का ज्ञान है। नारद जी एक निपुण संवादवाहक के साथ ही अच्छे और गुणी लेखक भी हैं उन्होंने नारद पांचरात्र, परिव्राज कोपनिषद, बृहन्नारदीय उपपुराण की रचना की है। लोककल्याण की भावना उनके संदेशों में सबसे पहले दिखाई देती है।